श्रीमद्भगवद्गीता के अनमोल श्लोक

Krishna and Arjuna Krishna with Flute Lord Krishna with Cow
कर्म करो, फल की चिंता मत करो। — श्रीमद्भगवद्गीता 2.47
जो हुआ, अच्छा हुआ। जो हो रहा है, वह भी अच्छा हो रहा है। जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है। जैसा वह विश्वास करता है, वैसा वह बन जाता है।
क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति भ्रमित होती है। जब स्मृति भ्रमित हो जाती है, तब बुद्धि नष्ट हो जाती है।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत — जब-जब धर्म की हानि होती है, मैं प्रकट होता हूँ।
धर्मो रक्षति रक्षितः — जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।
यतो धर्मस्ततो जयः — जहाँ धर्म है, वहाँ विजय है।
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् — अपना धर्म, दोषपूर्ण होते हुए भी, दूसरे के धर्म से श्रेष्ठ है।
कर्मण्येव अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन — तेरा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं।
योगः कर्मसु कौशलम् — कर्मों में कुशलता ही योग है।
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् — मरोगे तो स्वर्ग मिलेगा, जीतोगे तो पृथ्वी।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः — जो श्रेष्ठ व्यक्ति करते हैं, वही अन्य लोग भी करते हैं।
श्रद्धावान् लभते ज्ञानं — श्रद्धा और संयम से ही ज्ञान प्राप्त होता है।
आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है।
न क्रोध से ही मोह उत्पन्न होता है, और मोह से स्मृति नष्ट होती है।
नर्क जाने के तीन द्वार हैं: काम, क्रोध और लोभ।
जो व्यक्ति अपने इंद्रियों को वश में रखता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है।
मौन सबसे अच्छा उत्तर है जब शब्दों का कोई महत्व न हो।
सत्य कभी नष्ट नहीं होता, झूठ का विनाश निश्चित है।
अहंकार से प्रतिष्ठा समाप्त होती है।
ईश्वर को समर्पण ही मुक्ति का मार्ग है।
कर्तव्यपरायणता ही श्रेष्ठ सेवा है।
धृति अर्थात स्थिरता ही धर्म की नींव है।
योगेश्वरः कृष्णो… नीति में अटल अर्जुन जहाँ हों, वहाँ विजय निश्चित है।
संतुलित दृष्टि से राजनीति और धर्म का समन्वय राष्ट्र को महान बनाता है।